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सुधियों की चाँदनी

निर्मलेन्दु शुक्ल

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2021
पृष्ठ :128
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 15865
आईएसबीएन :978-1-61301-697-8

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विलक्षण गीतकार के गीत, छंद

बिछुरत एक प्रान हर लेहीं...

 


देखते-देखते आज पाँच वर्ष बीत गये जब मेरे अनुजवत प्रिय, मित्र गीतकार निर्मलेन्दु शुक्ल ने दुनिया को अलविदा कहा था। लेकिन किसी के अलविदा कह देने से कोई रुख़सत नहीं होता, क्योंकि किसी को याद करना और उसे भूल जाना व्यक्ति के अपने वश में नहीं होता है। निर्मलेन्दु जी की यादें सन्नाटे की वह गूँज है जो मौन में भी सुखद एहसास कराती है। विगत सप्ताह साक्षी बिटिया का फोन आया कि ताऊ जी कैसे हैं, फिर उसने कहा कि ताऊ जी मेरी शादी 12 दिसम्बर को है और इसी कारण मम्मी ने आपको याद किया है। ताऊजी... हम सबका मन है कि पापा की कविताओं का संग्रह शादी से पहले प्रकाशित हो जाये। पाण्डुलिपि तरुण अंकल के पास है। यह सुनकर मैं निर्मलेन्दु भाई के साथ बिताए हुए पलों को याद करते हुए अतीत में चला गया।

निर्मलेन्दु जी से मेरी पहली भेंट उनके विवाह में हुई थी, जिसमें मुझे गीतकार वेद मिश्र जी ने आमंत्रित किया था। हालाँकि मैने वेद दादा से कहा भी कि यह कौन हैं, मैं तो परिचित भी नहीं हूँ फिर बारात में कैसे चलूँ, परन्तु फिर दादा का आदेश मानकर मैं बारात में गया। वहाँ वेद जी ने निर्मलेन्दु जी से मेरा परिचय कराया। फिर तो हम लोग प्रायः मिलने लगे। कालान्तर में देवल के साथ एक कवि सम्मेलन में मुलाकात हुई और फिर तो निर्मलेन्दु जी प्रायःअपने आफिस से निकलकर देवल सहित राजभवन आने लगे, मुलाकातें प्रगाढ़ता में बदलती गईं....

कुछ देर बाद जब मैं स्मृतियों से बाहर आया तो साक्षी की बात याद आई कि मुझे तो बारह दिसम्बर से पहले निर्मलेन्दु का गीत संग्रह प्रकाशित कराकर देना है। मैंने उनके बाल सखा गीतकार तरुण प्रकाश को फोन किया और तुरन्त उनके चैम्बर लालबाग़ जाकर, विचार विमर्श करके पाण्डुलिपि प्राप्त कर ली। पाण्डुलिपि पाकर मैंने ग़ज़लकार मित्र राजेन्द्र तिवारी को फोन किया तथा पूरी बात बताई। उन्होंने प्रसन्न होकर कहा पी.डी.एफ. भेज दो सब हो जाएगा, थोड़ी देर बाद राजेन्द्र भाई का फोन आया, भइया पाण्डुलिपि मिल गई है आप विवरण सहित निर्मलेन्दु जी की फोटो और अगर संभव हो तो कुछ लोगों के अभिमत, संस्मरण भी भेज दें। मैंने यथासम्भव शीघ्र वाँछित सामग्री उपलब्ध करा दी।

मैं आदरणीय अवध बिहारी श्रीवास्तव, भाई राजेन्द्र तिवारी, शैलेन्द्र शर्मा, अखिलेश त्रिवेदी शाश्वत, तरुण प्रकाश, कुलदीप शुक्ल का आभारी हूँ जिन्होंने मेरे एक निवेदन पर अल्प समय में ही अपना अभिमत उपलब्ध करा दिया। और निर्मलेन्दु जी की पत्नी, बेटी साक्षी, बेटे यथार्थ ने संग्रह हेतु जिस मनोयोग से उत्साहपूर्वक श्रम करके त्वरित सहयोग किया उसके लिए इन सबको ढेरों आशीष, स्नेह और उज्जवल भविष्य की अनन्त मंगलकामनाएं। भारतीय साहित्य संग्रह के प्रकाशक भाई गोपाल शुक्ल के संकलन के प्रति उनके स्नेह को मैं कम नहीं करना चाहता क्योंकि यह संग्रह इनके ही परिश्रम व लगन का प्रतिफल है, उन्हें हृदय से साधुवाद...

बिटिया की प्रबल इच्छानुसार उसके विवाह से पूर्व निर्मलेन्दु जी की पुस्तक सुधियों की चाँदनी के रूप में साक्षी को सौंपकर मुझे आत्मिक संतुष्टि की अनुभूति हो रही है.. पापा साथ हैं, बेटी का विश्वास कायम रहे और दाम्पत्य जीवन सदैव सुखमय हो यही मेरा आशीष है और प्रिय निर्मलेन्दु की स्नेहिल स्मृतियों को नमन करते हुये मेरी विनम्र श्रद्धांजलि...।  प्रभु से यही कामना है कि वे जहाँ भी हों उनकी आत्मा को चिर शान्ति प्राप्त हो और अगले जन्म में भी भाई, मित्र के रूप में निर्मलेन्दु जी फिर मिलें...
पत्तों की तरह शाख़ से उड़कर बिखर गया।
ख़ुश्बू उड़ा के फूल वो जाने किधर गया।


- मुनेन्द्र शुक्ल
39, चेतना विहार लेन 2,
(सेक्टर 14) इन्दिरा नगर, लखनऊ
मो.7355550788

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